यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होता
यदि कबीर जिन्दा होते तो आजकल के दोहे यह होते :- पानी आँखों का मरा, मरी शर्म और लाज ! कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज !! भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास ! बहन पराई हो गयी, साली खासमखास !! मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश ! बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश !! बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान ! पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान !! पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग ! मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग !! फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर ! पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर !! पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप! भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप !!